मांट विधानसभाः क्या सती के श्राप से न जीत सका कोई स्थानीय जाट नेता ?

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शरणागति देवी (काल्पनिक फोटो)

मफतलाल अग्रवाल

मथुरा। विधानसभा चुनाव 2022 की सरगर्मियों के बीच जहां राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी है। वहीं मांट विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक जाट मतदाता होने के बाद भी नौहवारी-नरवारी में से किसी भी प्रत्याशी के विधानसभा में न पहुंचने के पीछे सती के श्राप की किवंदती क्षेत्र में एक बार फिर लोगों की जुबां पर है। देखना होगा कि आगामी चुनाव में कोई जाट प्रत्याशी चुनाव जीतकर इस श्राप को तोड़ने में सफल हो सकेगा अथवा सती के श्राप की किवदंती सच साबित होगी।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 की सरगर्मियां एक बार फिर जोर पकड़ने लगी हैं। जिसमें राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा अपनी-अपनी पार्टियों में टिकट की दावेदारी और जनता में जनसंपर्क किया जा रहा है लेकिन सर्वाधिक जाट मतदाता होने के बाद भी मांट विधानसभा क्षेत्र से कोई भी स्थानीय जाट नेता विधानसभा में पहुंचने में सफल नहीं हो सका है। आजादी के बाद से पहला चुनाव मथुरा जनपद में सिर्फ दो ही विधानसभा सीटें थीं। जिन्हें नार्थ मथुरा और साउथ मथुरा के नाम से जाना जाता था। जिसमें नार्थ मथुरा में मांट, गोकुल एवं छाता का कुछ क्षेत्र शामिल था। जबकि साउथ मथुरा में फरह, गोवर्धन और मथुरा-वृंदावन शामिल था। जिसमें पहले विधानसभा चुनाव वर्ष 1951 में नार्थ मथुरा विधानसभा से कांग्रेस से जुगलकिशोर आचार्य और होशियार सिंह बाबा निवासी हसनपुर जरैलिया मांट पहले जाट प्रत्याशी निर्दलीय के रूप में लड़े। इसमें करीब 1100 वोटों से होशियार सिंह बाबा को हार का सामना करना पड़ा। जबकि साउथ मथुरा से चौ. शिवमंगल सिंह कांग्रेस और राजा महेंद्र प्रताप सिंह निर्दलीय का मुकाबला हुआ। जिसमें कांग्रेस के शिवमंगल सिंह विजयी घोषित हुए।

स्व. चौधरी चतुर सिंह (फाइल फोटो)

इसके बाद मांट विधानसभा का अलग से गठन हो गया और वर्ष 1961 में रिपब्लिकन पार्टी से होशियार सिंह बाबा ने फिर किस्मत आजमाई और उन्हें कांग्रेस से लक्ष्मीरमण आचार्य सोशलिस्ट पार्टी के राधे श्याम शर्मा के सामने चुनाव लड़ा जिसमें राधे श्याम शर्मा विजयी घोषित हुए। इसके बाद वर्ष 1967 में नौहवारी क्षेत्र के गांव भगत भकरैलिया निवासी निर्दलीय चौ. चतुर सिंह ने जाट प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस के लक्ष्मीरमण आचार्य के सामने चुनाव लड़ा। इस चुनाव में करीब 3 हजार वोटों से चौ. चतुर सिंह को हार का सामना करना पड़ा लेकिन चौ. चतुर सिंह ने हार नहीं मानी और फिर वर्ष 1969 में चौ. चतुर सिंह चुनाव लड़े और कांग्रेस के लक्ष्मीरमण आचार्य से मात्र लगभग 750 वोटों से हार गए। लगातार 2 हार देखते हुए वर्ष 1974 में चौ. चतुर सिंह ने भारतीय क्रांति दल के प्रत्याशी ठाकुर चंदन सिंह को अपना समर्थन दिया और ठाकुर चंदन सिंह विधायक बनने में सफल हो गए। इसके बाद फिर 1977 में चौ. चतुर सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और उन्हें एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा।

इस हार ने जहां चौ. चतुर सिंह को बुरी तरह आहत किया वहीं उनकी पत्नी शरणागति देवी ने इस हार के लिए क्षेत्रीय जाटों को जिम्मेदार मानते हुए निकट ही बह रही यमुना नदी में यह श्राप देते हुए जल समाधि ले ली कि ’’हे यमुना मैया, अगर मैं तुम्हारी सच्ची भक्त हूं तो मुझे अपने में समा लो और कभी भी इस क्षेत्र से कोई जाट विधायक बनने में सफल न हो’’ साथ गईं निकटवर्ती गांव भैरई निवासी दो महिलाएं कलावती पत्नी अमीचंद एवं लीलावती पत्नी प्रेम सिंह ने शरणागति देवी को यमुना में प्रवेश करने से रोकने का काफी प्रयास किया लेकिन शरणागति देवी ने यमुना में शरण ले लीं। साथ गईं महिलाओं ने शोर मचाया तो आसपास के गांव की जनता यमुना नदी पर पहुंची और यमुना में शरणागति देवी को तलाश करने का कई दिनों तक प्रयास किया लेकिन उनका कोई पता नहीं चल सका। यमुना भक्त शरणागति देवी की जल समाधि क्षेत्र में आज भी चर्चा का विषय बनी हुई है। वहीं उनका श्राप भी जब-जब विधानसभा चुनाव होते हैं तो क्षेत्रीय लोगों की जुबान पर चर्चा का विषय रहता है।

क्षेत्रीय जनता की मानें तो चौ. चतुर सिंह के पिता चौ. गोवर्धन सिंह नौहवारी क्षेत्र के 100 गांवों के सबसे बड़े जमींदार थे। उनकी 8 गांवों में हजारों बीघा जमीन थी। जो चुनाव के चलते 100 बीघे से भी कम में सिमट कर रह गई। लगातार चुनावी हार ने चौ. चतुर ंिसह को आर्थिक रूप से तोड़ दिया था। बताते हैं कि चौ. चतुर सिंह की पत्नी शरणागति देवी तो यमुना की अनन्य भक्त थीं ही, वहीं चौ. चतुर सिंह के दादा चौ. हेतराम सिंह भी यमुना मैया के बहुत बड़े भक्त थे। कहा जाता है कि निकटवर्ती गांव मुसमुना में हुई देशी घी की विशाल दावत के दौरान जब देशी घी कम पड़ा था तो उन्होंने गांव के लोगों से कहा कि घी के पीपे लेकर यमुना जल से भर लाओ लेकिन बाद में उतना ही घी यमुना में प्रवाहित कर देना। पहले तो ग्रामीणों ने इसे मजाक समझा लेकिन यमुना में उनकी अपार श्रद्धा को देखते हुए विश्वास किया और यमुनाजी से घी के पीपों में जल लाकर कढ़ाईयों में जल डाला तो वह देशी घी में परिवर्तित हो गया और मालपुआ की दावत भली भांति संपन्न हुई और इसके बाद यमुना नदी से जितने पीपे जल लाया गया गया था, उतने ही पीपों में देशी घी भरकर यमुना नदी में प्रवाहित किए गए।

इसे यमुना भक्त शरणागति देवी का श्राप कहें या किवंदती कि मांट क्षेत्र में आज की स्थिति में सर्वाधिक जाट मतदाता हैं। जिनकी संख्या लगभग 90 हजार है। जबकि ब्राहमण मतदाताओं की संख्या 45 हजार एवं ठाकुर वोटर 26 हजार लगभग हैं। जिसमें चौ. चतुर सिंह के ही गृह क्षेत्र में 100 गांव नौहवारी के और 12 गांव नरवारी के जाट बाहुल्य हैं। सर्वाधिक संख्या होने के बाद भी आजादी से 2017 तक कोई भी स्थानीय जाट नेता मांट विधानसभा से चुनाव जीतने में सफल नहीं हो सका। जबकि इस विधानसभा सीट पर 14 बार ब्राह्मण प्रत्याशी विजयी रहे हैं। इनमें लक्ष्मीरमण आचार्य, राधेश्याम शर्मा, पं. लोकमणि शर्मा और पं. श्यामसुंदर शर्मा 8 बार उप्र विधानसभा पहुंचने में सफल साबित हुए हैं। जबकि ठाकुर प्रत्याशी के रूप में ठाकुर चंदन सिंह 1974 और ठाकुर कुशलपाल सिंह 1985 में विधानसभा चुनाव जीते थे।

वर्ष 2012 में जाट नेता के रूप में रालोद के जयंत चौधरी ने चुनाव लड़ा था और पं. श्यामसुंदर शर्मा को हराकर चुनाव जीते थे लेकिन उन्होंने सांसद रहते हुए विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया और इसके चलते वह भी उप्र विधानसभा नहीं पहुंच सके। स्थानीय जाट नेताओं में अब तक एक दर्जन से अधिक नेता हार का मुंह देख चुके हैं लेकिन इसके बाद भी जाट नेताओं का चुनाव लड़ने का सिलसिला लगातार जारी है। 2022 के विधानसभा चुनाव में किस पार्टी से कौन प्रत्याशी चुनाव लड़ेगा, यह तो आने वाला वक्त बताएगा लेकिन एक बार फिर क्षेत्रीय जाट नेता विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए लंगोटा कसते हुए नजर आ रहे हैं। इसमें 1996 में निर्दलीय चुनाव लड़ चुके वरिष्ठ किसान नेता चौ. रामबाबू सिंह कटैलिया, रालोद से 2 बार चुनाव लड़ चुके चौ. योगेश नौहवार, प्रसपा के जिलाध्यक्ष एवं जिला सहकारी बैंक के पूर्व चेयरमैन जगदीश नौहवार, वरिष्ठ भाजपा नेता एवं नौहझील ब्लॉक प्रमुख पति राजेश चौधरी, रालोद नेता चौ. देवराज सिंह, भाजपा नेता चौ. भगत सिंह सहित अन्य कई नेता भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। बल्कि कई नेताओं ने अपना चुनावी जनसंपर्क भी तेज कर दिया है। अब देखना होगा कि 2022 के विधानसभा चुनाव में शरणागति देवी का श्राप किवंदती सटीक साबित होती है अथवा क्षेत्रीय जाट नेता इस मिथक को तोड़ने में सफल साबित होते हैं।

चौ. मंगल सिंह

स्व. चौधरी चतुर सिंह के पुत्र चौ. मंगल सिंह ने विषबाण मीडिया से बातचीत में बताया कि उनके परदादा बहुत बड़े यमुना भक्त थे। जिन्होंने यमुना जल को देशी घी में परिवर्तित कर दिया था और दावत को सफल बनाया था। बताते हैं कि उनके पिता चौ. चतुर सिंह 3 बार मांट विधानसभा का चुनाव लड़े थे। जिसमें एक बार तो वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मात्र 400 वोटों पराजित हुए थे। दो बार की हार के बाद उन्होंने अपने राजनीतिक शिष्य ठाकुर चंदन सिंह को समर्थन दिया और वह विधानसभा पहुंचने में सफल रहे। जिससे लक्ष्मीरमण आचार्य को मांट विधानसभा क्षेत्र छोड़ना पड़ा। इसके बाद 1977 में फिर उनके पिता चौ. चतुर सिंह चुनाव लड़े, लेकिन वह चुनाव नहीं जीत सके।

चौ. मंगल सिंह की मानें तो चौ. चतुर सिंह 21 वर्ष तक लगातार भूमि विकास बैंक के चेयरमैन, 3 बार नौहझील ब्लॉक प्रमुख, 10 वर्ष जिला सहकारी बैंक मथुरा के मैनेजिंग डायरेक्टर निर्वाचित हुए थे। राजनीति से सन्यास लेने के बाद उन्होंने सामाजिक कार्यों में बढ़चढ कर हिस्सा लिया और 10 जनवरी 1993 में उनका निधन हो गया। श्री सिंह ने लगातार चुनाव हारने के चलते परिवार के आर्थिक हालात डांवाडोल होने, जमीन बिकने और अपनी मां शरणागति देवी द्वारा चुनावी हार से आहत होकर यमुना में जल समाधि लगाने की चर्चाओं को निराधार बताते हुए कहा कि यह सब सिर्फ अफवाह है। उनकी मां शरणागति देवी यमुनाजी की भक्त थीं। वह प्रत्येक रविवार को महिला साथियों के साथ यमुना स्नान करने जाती थीं। सावन मास में जब यमुना उफान पर थी तब वह रविवार को निकटवर्ती गांव की महिलाओं के साथ यमुना स्नान के लिए गई थीं। जहां एक गहरा गड्ढा होने के कारण उसमें डूब गईं थीं। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि जब वह यमुना स्नान के दौरान गहरे पानी में घुस रही थीं तो साथ की महिलाओं ने उन्हें रोकने का प्रयास किया था लेकिन वह रूकी नहीं और यमुना के गहरे पानी में समा गईं। उनकी कई दिन तक खोजबीन की गई लेकिन उनका पता नहीं लग सका।

जमीन बिकने की चर्चा पर उन्होंने बताया कि जमींदारी उन्मूलन में उनके पिता की जमीन चली गई थी। यह सच है कि मेरे पूर्वज क्षेत्र के बड़े जमींदार रहे हैं। उनके पिता की 70 बीघा जमीन 2 भाईयों के बीच में आज भी मौजूद है। श्री सिंह इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि अब तक उनके पिता चौ. चतुर सिंह सहित चौ. रूप सिंह, योगेश नौहवार, प्रताप चौधरी, जगदीश नौहवार, रामबाबू कटैलिया, हरपाल सिंह जैसे क्षेत्रीय जाट नेता चुनाव जीतने में सफल नहीं हो सके हैं। इनमें चौधरी योगेश नौहवार और चौ. जगदीश नौहवार 2-2 बार चुनाव हार चुके हैं। जबकि दोनों ही प्रत्याशी तीसरी बार चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। श्री सिंह कहते हैं कि वह संघ-भाजपा से जुड़े रहे हैं। वर्तमान में वह आरएसएस की जन शिक्षा समिति के सदस्य भी हैं। उनके पुत्र अनिल चौधरी 2012 में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की जनक्रांति पार्टी से रालोद के जयंत चौधरी के खिलाफ मांट विधानसभा से चुनाव लड़ चुके हैं। जिसमें अनिल चौधरी की जमानत जब्त हो गई थी।

चौ. रामबाबू सिंह कटैलिया

किसान नेता रामबाबू सिंह कटैलिया जो कि मांट विधानसभा से चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे हुए हैं ने से बातचीत में स्वीकार किया कि क्षेत्र में चौधरी चतुर सिंह की पत्नी के श्राप की किवदंती तो उन्होंने भी सुनी है लेकिन वह इसे सही नहीं मानते हैं। उन्होंने मांट क्षेत्र में करीब सवा लाख जाट मतदाता होने का दावा करते हुए कहा कि स्थानीय जाट नेताओं में आपसी मतभेद और उनका जमीनी स्तर पर अपना कोई वोट बैंक न होने के कारण ही जाट नेता विधानसभा चुनाव हारते रहे हैं। जो जाट प्रत्याशी चुनाव लड़ते हैं यदि वह पार्टी छोड़कर उनके मुकाबले निर्दलीय चुनाव लड़ें तो उन्हें 500 वोट भी प्राप्त नहीं होंगे। ऐसे नेताओं को पार्टियां टिकट देती हैं। हालांकि मुझे भी कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ने का आमंत्रण दिया गया है लेकिन मैं क्षेत्रीय जनता की मांग पर निर्दलीय रूप से चुनाव लडूंगा। हर विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव लड़ने का ऐलान करने के बाद पीछे हटने के सवाल पर उन्होंने कहा कि मैंने वर्ष 2012 में एक बार ही चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। साथ ही नामांकन भी कर दिया था लेकिन उस समय रालोद से जयंत चौधरी के चुनाव लड़ने के कारण मथुरा, आगरा, बुलंदशहर, अलीगढ़, हाथरस, जेवर सहित अन्य जनपदों के जाट नेताओं ने उनसे चुनाव न लड़ने का दबाव बनाया था। जिसके चलते उन्हें मजबूरी में चुनाव लड़ने से पीछे हटते हुए नामांकन वापस लेना पड़ा था। कहा कि इस बार वह चुनाव लड़ने का पूरा मूड बना चुके हैं। इस बार किसी भी कीमत पर वह चुनाव लड़ने से पीछे नहीं हटेंगेे और वह बिना किसी तामझाम के ही बाइक से ही पूरे क्षेत्र में संपर्क करेंगे। जनता के चंदा से ही वह चुनाव लड़ेंगे और इस बार चुनाव जीतेंगे।

नार्थ मथुरा मांट-गोकुल विधानसभा से सबसे पहले 1951 में चुनाव लड़ने वाले चौ. होशियार सिंह बाबा के पुत्र चौ. भगत सिंह जो कि वर्तमान में भाजपा नेता हैं और पार्टी से टिकट मांग रहे हैं ने विषबाण मीडिया को बताया कि मांट विधानसभा से लगातार जाट प्रत्याशी की हार के पीछे चौ. चतुर सिंह की पत्नी के श्राप की चर्चा क्षेत्रीय जनता से उन्होंने भी सुनी है लेकिन मांट विधानसभा क्षेत्र से किसी जाट के विधायक न बनने के पीछे वह तर्क देते हैं कि जब-जब विधानसभा चुनाव हुए हैं तब-तब जाट प्रत्याशी का क्षेत्रीय जाट नेताओं ने कभी नौहवारी तो कभी नरवारी के नाम पर तो कभी स्थानीय मुद्दों के नाम पर एक दूसरे जाट नेता का विरोध किया है। जिसके कारण हर बार जाट नेताओं को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। 2012 में क्षेत्रीय जाट नेताओं ने जयंत चौधरी को समर्थन दे दिया था। जिसके चलते जयंत चौधरी चुनाव जीत गए थे लेकिन वह बाहरी जाट नेता थे। यदि क्षेत्रीय जाट स्थानीय नेता के लिए भी सपोर्ट दें तो मांट विधानसभा चुनाव जीतना बड़ी बात नहीं होगी।

मांट विधानसभा के मतदाता के जातिगत आंकड़ा (लगभग)
जाट- 90 हजार
ठाकुर- 26 हजार
ब्राह्मण- 45 हजार
गुर्जर- 15 हजार
वैश्य- 28 हजार
जाटव- 40 हजार
बघेल- 18 हजार
मुस्लिम- 17 हजार
कोली- 8 हजार
खटीक- 3 हजार

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
(यह खबर तथ्यों एवं जनचर्चाओं पर आधारित है। इस खबर में किसी भी व्यक्ति की छवि धूमिल करने का प्रयास नहीं किया गया है।)