मांट विधानसभा में आज तक न जला दीपक न खिल सका कमल

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मफतलाल अग्रवाल

मथुरा। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की सरगर्मियों के बीच एक बार फिर भाजपा और आरएसएस के लिए मांट विधानसभा की सीट चुनौती बनी हुई है। इस सीट पर आजादी के बाद से 2017 तक भाजपा अपना खाता खोलना तो दूर बीजेपी के दिग्गज नेताओं को जमानत जब्त का भी सामना करना पड़ा है। हालांकि लोकसभा चुनाव में देखा जाए तो मांट विधानसभा ने कई बार भाजपा को सबसे अधिक वोट यहां से दिए हैं लेकिन विधानसभा चुनाव में उसे हार का ही सामना करना पड़ा है।

जनपद की 5 विधानसभा सीटों में मांट विधानसभा सीट का आजादी के बाद से ही आज तक अजब-गजब इतिहास रहा है। इस सीट पर सर्वाधिक जाट मतदाता होने के बाद भी यहां से कोई जाट नेता उत्तर प्रदेश विधानसभा नहीं पहुंच सका है। वहीं जनपद की वर्तमान 5 विधानसभा सीटों में से एकमात्र मांट विधानसभा ही ऐसी सीट है। जहां भारतीय जनसंघ से लेकर भाजपा बनने के बाद भी आज तक अपना खाता खोलने में सफल नहीं हो सकी है। यहां तक कि राम लहर और मोदी लहर में भी यहां कमल नहीं खिल सका था। राम लहर और मोदी लहर में भाजपा के प्रत्याशी तीसरे नंबर से आगे नहीं बढ़ सके। वहीं भाजपा के कई दिग्गजों को जमानत जब्त का भी सामना करना पड़ा।

आजादी के बाद 1951 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में मांट कम सादाबाद पश्चिम सीट से कांग्रेस के लक्ष्मीरमण आचार्य विजयी रहे। इन्होंने 24638 वोट प्राप्त किए। जबकि इनके मुकाबले में भारतीय जनसंघ के कन्हैया लाल को मात्र 4254 वोट ही हासिल हो सके और यह 10वें नंबर पर रहे। जबकि मांट क्षेत्र से जुड़ी मथुरा साउथ विधानसभा सीट से कांग्रेस के आचार्य जुगलकिशोर 14274 वोट लेकर विजयी रहे। वहीं भारतीय जनसंघ के बिशनचंद 2115 वोट लेकर पांचवें स्थान पर रहे।

वर्ष 1957 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में मांट विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के आचार्य लक्ष्मीरमण 41951 वोट लेकर जीतने में सफल रहे। जबकि भारतीय जनसंघ के जयवीर सिंह 12177 वोट प्राप्त कर छठवें स्थान पर रहे।

वर्ष 1962 में हुए विधानसभा चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के राधेश्याम शर्मा 16669 वोट लेकर मांट विधानसभा सीट से प्रथम स्थान पर रहे। जबकि जनसंघ के उम्मीदवार रविंद्रपाल सिंह 5530 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे।
वर्ष 1967 में मांट विधानसभा सीट से कांग्रेस के आचार्य लक्ष्मीरमण ने 19302 वोट हासिल किए और विजयी रहे। जबकि भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी डी सिंह को मात्र 3707 वोट ही मिले और वह पांचवे स्थान पर रहे।

वर्ष 1969 में कांग्रेस के आचार्य लक्ष्मीरमण मांट विधानसभा सीट से 23695 लेकर विधायक बने। वहीं भारतीय जनसंघ के महिपाल सिंह 1655 वोट लेकर पांचवे स्थान पर रहे।

वर्ष 1974 में मांट विधानसभा सीट से भारतीय क्रांति दल के ठाकुर चंदन सिंह 33565 वोट हासिल कर विजयी रहे। जबकि भारतीय जनसंघ के गौरीशंकर दुबे 1713 वोट ही हासिल कर सके और पांचवे स्थान पर रहे।

वर्ष 1977 में मांट विधानसभा सीट से जनता पार्टी के संयुक्त प्रत्याशी के रूप में राधेश्याम शर्मा 22337 वोट लेकर विजयी घोषित हुए। जबकि कांग्रेस के पं. लोकमणि शर्मा को छोड़कर अन्य किसी पार्टी ने यहां से चुनाव नहीं लड़ा। अन्य प्रत्याशियों के निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा था।

वर्ष 1980 में विपक्ष के विघटन के बाद भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पं. लोकमणि शर्मा 30348 वोट लेकर विधायक बने। जबकि भाजपा के प्रत्याशी पद्म सिंह 776 मत लेकर छठे स्थान पर रहे।

वर्ष 1985 में मांट विधानसभा क्षेत्र से लोकदल के ठाकुर कुशलपाल सिंह 27123 वोट लेकर विजयी रहे। जबकि दूसरे स्थान पर कांग्रेस के पं. लोकमणि शर्मा दूसरे स्थान पर रहे। जबकि भाजपा द्वारा अपना कोई प्रत्याशी इस चुनाव में मांट सीट से नहीं उतारा गया।

वर्ष 1989 में कांग्रेस से पं. श्यामसुंदर शर्मा मांट विधानसभा सीट पर विजयी रहे। इन्हें 34862 वोट मिले। जबकि दूसरे स्थान पर जनता दल के ठा. कुशलपाल सिंह रहे। जबकि भाजपा ने अपना प्रत्याशी न उतारकर जनता दल को समर्थन दिया था।

इसके बाद वर्ष 1991 में आई जबरदस्त राम लहर के बीच हुए चुनाव में भाजपा ने पूर्व ब्लॉक प्रमुख एवं क्षेत्रीय दिग्गज जाट नेता चौ. रूप सिंह को मैदान में उतारा लेकिन कांग्रेस के पं. श्यामसुंदर शर्मा ने 31342 मत लेकर जनता दल के ठा. कुशलपाल सिंह को परास्त किया और विधायक बने। जबकि भाजपा के चौ. रूप सिंह को 20921 वोट लेकर तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा।

वर्ष 1993 में कांग्रेस के ही पं. श्यामसुंदर शर्मा 42995 वोट लेकर जीत हासिल की। वहीं जनता दल के कुशलपाल सिंह दूसरे स्थान पर रहे। जबकि भाजपा के तत्कालीन जिलाध्यक्ष एवं वरिष्ठ भाजपा नेता पद्म सिंह शर्मा चुनाव मैदान में उतरे थे और 16942 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे।

वर्ष 1996 में मांट विधानसभा सीट पर पं. श्यामसुंदर शर्मा ने कांग्रेस से बगावत करते हुए ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस तिवारी गुट से चुनाव लड़ा। जिसमें 39789 वोट लेकर बसपा के हर्ष कुमार बघेल को पराजित कर जीत हासिल की। जबकि भाजपा के पद्म सिंह शर्मा 15937 मत लेकर तीसरे स्थान से आगे नहीं बढ़ सके।

वर्ष 2002 में पं. श्यामसुंदर शर्मा ने एक बार फिर पार्टी बदली। उन्होंने अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ा और 67718 वोट पाकर एक बार फिर जीत हासिल की। उन्होंने बसपा के चौ. प्रताप सिंह को हराया। इस चुनाव में भाजपा ने मैदान छोड़़ते हुए श्यामसुंदर शर्मा को समर्थन दिया था।

वर्ष 2007 में भी श्यामसुंदर शर्मा अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़े और 46932 वोट प्राप्त कर विजयी रहे। जबकि भाजपा के गोपाल शर्मा मात्र 2353 वोट लेकर पांचवे स्थान ही प्राप्त कर सके। भाजपा को न सिर्फ बुरी हार का सामना करना पड़ा वरन् उनके प्रत्याशी की जमानत भी जब्त हो गई।

वर्ष 2012 में रालोद के जयंत चौधरी ने 87062 वोट प्राप्त कर अब तक अविजित रहे पं. श्यामसुंदर शर्मा को हरा दिया। श्यामसुंदर शर्मा को 71007 वोट मिले। जबकि भाजपा के प्रत्याशी एवं पूर्व विधायक प्रणतपाल सिंह को मात्र 3343 वोट ही मिल सके और वह अपनी जमानत तक गंवा बैठे। इसके बाद जयंत चौधरी द्वारा सांसद होने के कारण विधानसभा से इस्तीफा दे दिया गया। तत्पश्चात् हुए उपचुनाव में पं. श्यामसुंदर शर्मा ने रालोद के योगेश नौहवार को चुनाव में हरा दिया और एक बार फिर विधायक बने।

वर्ष 2017 में आई मोदी लहर के दौरान भाजपा ने फिर से जोश खरोश के साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं समाजसेवी एसके शर्मा को अपना प्रत्याशी बनाते हुए चुनावी मैदान में उतारा लेकिन इस बार भी बसपा के हाथी पर सवार हो चुके श्यामसुंदर शर्मा ने 65862 मत लेकर रालोद के योगेश नौहवार को 65430 हराया। जबकि भाजपा के सतीश कुमार शर्मा को 59871 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे।

जबकि जनपद की छाता, गोवर्धन, मथुरा-वृंदावन एवं बलदेव विधानसभा सीटों पर भाजपा के प्रत्याशियों ने रिकार्ड मतों से जीत हासिल की, लेकिन मांट में भाजपा का उम्मीदवार तीसरे स्थान पर ही रहा। भारतीय जनसंघ का दीपक न जलने एवं भाजपा का कमल अभी तक न खिलने के बाद भी एक बार फिर भाजपा से एसके शर्मा, राजेश चौधरी, भाजपा जिलाध्यक्ष मधु शर्मा एवं पूर्व प्रोफेसर रामप्रताप सिंह टिकट लेने के लिए दावेदारी कर रहे हैं। विधानसभा चुनावों में लगातार हार का मुंह देखने वाली भाजपा लोकसभा चुनाव में चौ. तेजवीर सिंह और ड्रीमगर्ल हेमामालिनी को इस विधानसभा क्षेत्र से सबसे अधिक मत दिलाने में सफल रही है।

अब देखना होगा कि आने वाले 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए नासूर बन चुकी मांट विधानसभा सीट पर भाजपा और आरएसएस के दिग्गज कमल खिलाने में कामयाब हो सकेंगे अथवा नहीं।

भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष पद्म सिंह शर्मा

भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष एवं मांट विधानसभा क्षेत्र से 2 बार चुनाव लड़ चुके पदम सिंह शर्मा ने पार्टी की लगातार हार पर कहा कि यहां स्थानीय लोग जातीय नफरत फैलाकर चुनाव जीतने में सफल हो जाते हैं। जबकि लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे हावी रहते हैं। जिससे भाजपा को यहां से लाभ होता है। विधानसभा चुनाव प्राईवेट कंपनी की तरह होता है।

कहा कि वह 2002 में विधानसभा चुनाव लगातार तीसरी बार लड़ना चाह रहे थे और वह इसे जीतने में सफल भी हो जाते लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं ने उन्हें चुनाव लड़ने का मौका ही नहीं दिया। यदि पार्टी के कार्यकर्ता जातीय नफरत फैलाने वालों के खिलाफ डटकर मुकाबला करें और चुनाव में एकत्रित होकर पार्टी की नीतियों का प्रचार प्रसार करें तो भाजपा यहां से कमल खिलाने में कामयाब हो सकती है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
(सरकारी आंकड़ों पर आधारित)