विधानसभा चुनाव 2022ः राजनीति में शिखर से शून्य पर आ गया मथुरा का वैश्य समाज

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मफतलाल अग्रवाल

मथुरा। जनपद की राजनीति में कभी अपना वर्चस्व साबित करने वाला वैश्य समाज बीते तीन दशक से विधानसभा चुनावों में अपना राजनीतिक वजूद तलाश रहा है। वहीं जनपद की नगर पालिका एवं नगर पंचायतें में भी पहली बार वैश्य विहीन नजर आ रही हैं। एक बार फिर 2022 चुनाव में वैश्य समाज से अनेक दावेदार टिकट की लाइन में लगे हैं लेकिन देखना होगा कि कौन सा राजनीतिक दल वैश्य समाज पर अपना दांव लगाता है और वैश्य प्रत्याशी विधानसभा पहुंचने में सफल हो पाता है अथवा नहीं।

विधानसभा 2022 की तैयारियां जोर शोर से शुरू हो गई हैं। वैश्य समाज के लोगों ने टिकट की दावेदारी करना शुरू कर दिया है। जिसमें मथुरा-वृंदावन सीट पर भाजपा से राजकुमार अग्रवाल मांट वाले, भाजपा के पूर्व मंत्री रविकांत गर्ग एवं भाजपा महानगर अध्यक्ष विनोद अग्रवाल सुपारी वाले, रालोद से डॉ. अशोक अग्रवाल, सपा से अनिल अग्रवाल सहित अन्य दावेदार वर्तमान में टिकट के लिए प्रयास कर रहे हैं। राजनेताओं के अनुसार, मथुरा-वृंदावन विधानसभा क्षेत्र में वैश्य और ब्राहमण मतदाता बराबर-बराबर 1.10-1.10 लाख बताए जाते हैं।

वरिष्ठ नेता अनिल अग्रवाल (समाजवादी पार्टी)

आंकड़ों के हिसाब से देखें तो मथुरा विधानसभा सीट से वैश्य प्रत्याशी के रूप में सबसे पहला चुनाव 1967 में शांतिचरण पिंडारा (पानीगांव) ने लड़ा था और निर्दलीय प्रत्याशी एडी चरण से चुनाव हार गए थे लेकिन 1969 में कांग्रेस के ही प्रत्याशी शांतिचरण पिंडारा ने बीकेडी के देवीचरण अग्निहोत्री को करीब 200 वोटों से पराजित कर जीत हासिल की। इसी चुनाव में भारतीय जनसंघ के बांकेबिहारी माहेश्वरी तीसरे स्थान पर रहे थे। जबकि सोशलिस्ट पार्टी के लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता अपनी जमानत भी गंवा बैठे।

वर्ष 1974 में मथुरा विधानसभा सीट पर कांग्रेस के रामबाबू ने वैश्य समाज के भारतीय जनसंघ के बांकेबिहारी माहेश्वरी को करीब 4500 वोटों से चुनाव में हरा दिया। इसी चुनाव में एनसीओ से रामजीदास ने चुनाव लड़ा और इनकी जमानत जब्त हो गई। वहीं निर्दलीय प्रत्याशी विनोद कुमार अग्रवाल तो सैकड़ा भी पार नहीं कर सके और उन्हें मात्र 60 वोट ही मिले।

वर्ष 1977 में जनता पार्टी के वैश्य प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े कन्हैयालाल गुप्ता विजयी रहे। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस के लक्ष्मीमरण को लगभग 16 हजार से अधिक मतों से हराया।

वर्ष 1980 में कांग्रेस (आई) के वैश्य प्रत्याशी दयालकृष्ण एडवोकेट ने 28 हजार से अधिक मत लेकर भाजपा के मगनलाल शर्मा को 10 हजार से अधिक वोटों से हराया और विधायक बने। 1985 में किसी भी प्रमुख पार्टी ने वैश्य समाज को चुनाव नहीं लड़ाया लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में राकेश कुमार गुप्ता चुनाव लड़े, लेकिन इन्हें 200 वोट भी नहीं मिल सके।

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वर्ष 1989 में भाजपा ने रविकांत गर्ग को चुनाव लड़ाया। इन्होंने कांग्रेस के पूर्व विधायक प्रदीप माथुर को 5 हजार से अधिक मतों से हरा दिया। इसके बाद एक बार फिर 1991 में भाजपा के रविकांत गर्ग ने कांग्रेस के प्रत्याशी प्रदीप माथुर को करीब 22 हजार से वोटों से हराया और विधायक बने। रविकांत गर्ग ने वैश्य प्रत्याशी के रूप में 1991 में विजय पताका फहराई और इसके बाद फिर कोई वैश्य प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका।

वर्ष 1993 में भाजपा ने सिटिंग विधायक रविकांत गर्ग की टिकट काटकर रासाचार्य रामस्वरूप शर्मा को टिकट दिया। रामस्वरूप शर्मा ने 55138 मत लेकर कांग्रेस के सेठ विजय कुमार जैन को लगभग 14 हजार मतों से हराया। वर्ष 1996 में भाजपा ने फिर से रामस्वरूप शर्मा को चुनाव लड़ाया। जिसमें उन्होंने 39605 मत लेकर कांग्रेस के सेठ विजय कुमार जैन को एक बार फिर हरा दिया। जबकि भाजपा से टिकट न मिलने पर नाराज रविकांत गर्ग ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और 23288 मत लेकर तीसरे स्थान पर रहे।

वर्ष 2002 में कांग्रेस ने प्रदीप माथुर पर दांव लगाया और प्रदीप माथुर ने 40297 वोट लेकर भाजपा के रविकांत गर्ग को लगभग 7 हजार वोटों से हरा दिया। इसी चुनाव में वीरेंद्र कुमार गुप्ता ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा लेकिन इन्हें मात्र 481 मत ही मिले। वर्ष 2007 में कांग्रेस के प्रदीप माथुर ने 45383 मत लेकर भाजपा के मुरारी लाल अग्रवाल (24293) को लगभग 21 हजार वोटों से चुनाव हराया और एक बार फिर विधायक बनने में सफल रहे।

वर्ष 2012 में कांग्रेस के प्रदीप माथुर 54418 मत लेकर लगातार तीसरी बार जीतकर हैट्रिक लगाने में सफल रहे। जबकि भाजपा के देवेंद्र शर्मा 53996 दूसरे नंबर पर रहे। वहीं समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी डॉ. अशोक अग्रवाल को 53049 मत मिले। वहीं बसपा प्रत्याशी पुष्पा शर्मा को 30240 वोट मिले। इसी चुनाव में वैश्य प्रत्याशी के रूप में एलजेपी प्रत्याशी राधा अग्रवाल को मात्र 333 वोट मिले।

वर्ष 2017 में भाजपा के श्रीकांत शर्मा ने 1,43,361 वोट लेकर रिकार्ड जीत हासिल की और कांग्रेस के प्रदीप माथुर 42200 मत लेकर दूसरे स्थान पर रहे। बसपा के योगेश द्विवेदी 31168 मत लेकर तीसरे स्थान पर रहे। जबकि रालोद के डॉ. अशोक अग्रवाल को 29080 वोट के साथ चौथे स्थान पर खिसक गए। बीएचएकेएलपी से चुनाव लड़े अनूप अग्रवाल को मात्र 715 वोट ही मिल सके।

इसके अलावा अन्य वैश्य समाज के अनेक लोगों ने बीते तीन दशक में (1993 से आज तक) मथुरा-वृंदावन विधानसभा सीट पर छोटी पार्टियां और निर्दलीय रूप से चुनावी ताल ठोंकी लेकिन जीत हासिल नहीं कर सके। इसके अलावा छाता विधानसभा से भाजपा के तरूण सेठ, मांट विधानसभा से दूरदर्शी पार्टी के योगेंद्र अग्रवाल, सपा के कन्हैयालाल अग्रवाल, निर्दलीय रूप से रालोद के पूर्व जिलाध्यक्ष राजकुमार अग्रवाल ’मामा’ जैसे राजनीतिक दलों के नेताओं एवं निर्दलीय प्रत्याशियों ने किस्मत आजमाई लेकिन किसी को सफलता हासिल नहीं हो सकी।

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अगर हम जनपद की राजनीति में वैश्य समाज के वर्चस्व की बात करें तो मथुरा लोकसभा सीट से सबसे पहले सांसद के रूप में प्रोफेसर श्रीकृष्ण वैश्य समाज से ही चुने गए थे। इसके बाद विधायक के रूप में मथुरा-वृंदावन विधानसभा सीट से 1969 में शांतिचरण पिंडारा, 1977 में कन्हैयालाल गुप्ता, 1980 में दयालकृष्ण एडवोकेट, 1989 और 1991 में रविकांत गर्ग चुने गए थे।

वीरेंद्र अग्रवाल पूर्व पालिकाध्यक्ष (मथुरा नगर पालिका)

मथुरा नगर पालिका के पूर्व चेयरमैन वीरेंद्र अग्रवाल ने विषबाण मीडिया को बताया कि एक समय में मथुरा की 3 नगर पालिकाओं में से एक नगर पालिका और 13 नगर पंचायतों में से 5 नगर पंचायतों पर वैश्य समाज का कब्जा था। यह कार्यकाल 1995 से 2000 तक रहा। श्री अग्रवाल ने बताया कि इनमें मथुरा नगर पालिका के चेयरमैन वीरेंद्र अग्रवाल, सौंख नगर पंचायत से मणिशंकर बंसल, छाता नगर पंचायत से हेमचंद गुप्ता, राया नगर पंचायत से सुभाष चंद अग्रवाल, बाजना नगर पंचायत से ओमप्रकाश अग्रवाल एवं फरह नगर पंचायत शामिल है। बीते तीन दशक से किसी भी वैश्य प्रत्याशी के विधायक न बन पाने के सवाल पर श्री अग्रवाल ने कहा कि वैश्य समाज में आपसी सामंजस्य की कमी है। वहीं पार्टियों ने भी मजबूत वैश्य प्रत्याशी को चुनाव में नहीं उतारा और वैश्य समाज ने कभी इस पर सवाल भी नहीं उठाए न ही इसका विरोध किया। वहीं वैश्य समाज का एक पार्टी के प्रति झुकाव भी अन्य दलों से उतरने वाले वैश्य प्रत्याशियों की हार का कारण बना है।

रविकांत गर्ग (उप्र व्यापारी कल्याण बोर्ड के चेयरमैन)

पूर्व मंत्री एवं उप्र व्यापारी कल्याण बोर्ड के चेयरमैन रविकांत गर्ग ने विषबाण मीडिया को बताया कि वैश्य समाज के सहयोग के साथ पूरे मथुरा शहर की जनता ने उन्हें अपार स्नेह और आशीर्वाद देकर लगातार 2 बार विधायक बनाया था। इसके बाद राजनीतिक कारणों और एकजुटता न होने के चलते वैश्य प्रत्याशी विधायक बनने में सफल नहीं हो सका। 2022 में टिकट की दावेदारी को लेकर उन्होंने कहा कि वह पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता हैं। पार्टी यदि उन्हें चुनाव लड़ाएगी तो वह अवश्य चुनाव लड़ेंगे। यदि किसी अन्य प्रत्याशी को टिकट मिलती है तो वह उसके साथ कंधे से कंधा मिलकर चुनाव में प्रचार करेंगे और अपने प्रत्याशी को चुनाव जिताएंगे।

 

राजकुमार अग्रवाल ’मांट वाले’ (वरिष्ठ व्यापारी नेता)

वरिष्ठ व्यापारी नेता राजकुमार अग्रवाल मांट वाले का कहना है कि सभी राजनीतिक दलों ने वैश्य समाज की उपेक्षा की है। भाजपा, रालोद, सपा एवं बसपा सहित अन्य पार्टियों ने वैश्य समाज की भागीदारी को नकार दिया है। पार्टियों को वैश्य समाज से चंदे की अपेक्षा तो रहती है लेकिन टिकट देने के नाम पर मुंह मोड़ लेते हैं। आने वाले विधानसभा चुनावों में वैश्य समाज में चेतना जागृत होगी और वैश्य समाज राजनीतिक रूप से नया मुकाम हासिल करेगी।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
(खबर सरकारी आंकड़ों एवं राजनेताओं से वार्ता पर आधारित है)

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