विधानसभा चुनावः मथुरा ने रचे अजब-गजब रिकार्ड

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फोटो इंटरनेट से लिया गया।

मफतलाल अग्रवाल

मथुरा। बीते 70 साल के विधानसभा चुनावों की राजनीति में मथुरा जनपद ने अजब-गजब इतिहास रचे हैं। जिसमें मतदाताओं ने एक प्रत्याशी को मात्र एक ही मत देकर इतिहास रचा है तो वहीं वर्तमान भाजपा के विधायक एवं कैबिनेट मंत्री ने 1 लाख से अधिक मतों से अपने प्रतिद्वंदी को धूल चटाई है। कभी मतदाताओं ने अपने मतों का रिकार्ड तोड़ प्रयोग किया तो कभी सबसे कम मतदान कर नेताओं की नींद उड़ा दी।

वर्ष 1951 से लेकर वर्ष 2017 तक मथुरा के मतदाताओं ने अजब-गजब इतिहास लिखे हैं। जिसमें पहले विधानसभा चुनाव 1951 में छाता क्षेत्र के विधानसभा चुनाव में 80.9 प्रतिशत रिकार्ड मतदान किया गया। वहीं 1957 में छाता विधानसभा के मतदान प्रतिशत को पीछे छोड़ते हुए सादाबाद विधानसभा सीट पर 92.15 प्रतिशत मतदान हुआ। जबकि अभी तक के विधानसभा चुनावों में सबसे कम मतदान प्रतिशत 35.66 प्रतिशत वर्ष 2002 में छाता विधानसभा क्षेत्र का रहा है। जबकि इसी विधानसभा क्षेत्र में 1996 में 37.66 प्रतिशत वोटिंग हुई। इससे पूर्व 1977 में मथुरा विधानसभा सीट पर 36.31 प्रतिशत मतदान हुआ था।

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वर्ष 1996 तक सादाबाद सीट को मिलाकर मथुरा जनपद की छह सीटों में से सबसे कम 3 प्रत्याशी 1957 में सादाबाद विधानसभा सीट से लड़े थे। इस सीट पर निर्दलीय टीकाराम ने 22364 मत लेकर कांग्रेस के अशरफ अली खां को हराया। जबकि भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी महेंद्र सिंह तीसरे स्थान पर रहे। जबकि सर्वाधिक 47 प्रत्याशी 1993 में मथुरा विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे। इस चुनाव को भाजपा के प्रत्याशी रासाचार्य रामस्वरूप शर्मा ने 55138 वोट लेकर अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस के सेठ विजय कुमार को हराया। जिन्हें 41042 मत प्राप्त हुए थे। जबकि सबसे कम वोट निर्दलीय प्रत्याशी तेजवीर सिंह को मात्र 1 ही मत प्राप्त हुआ था।

जबकि इससे पूर्व 1991 में जनपद की छह विधानसभाओं में मथुरा विधानसभा सीट पर 36 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। जिसमें भाजपा के रविकांत गर्ग को 45753 वोट मिले और कांग्रेस के प्रदीप माथुर 23546 मत लेकर दूसरे स्थान पर रहे। जनता दल के नरेंद्र सिंह 18214 मत लेकर तीसरा स्थान प्राप्त किया। बसपा के प्रत्याशी रामजीलाल 1887 मत ही मिले। जबकि इस चुनाव में सबसे कम वोट 8 वोट निर्दलीय प्रत्याशी जयकरण महावर को मिले।

सर्वाधिक मतों से जीतने का श्रेय 2017 में भाजपा के श्रीकांत शर्मा को जाता है जिन्होंने 143361 मत लेकर जीत हासिल की थी। जबकि दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के प्रत्याशी प्रदीप माथुर को मात्र 42200 मत मिले और 101161 मतों से श्रीकांत शर्मा को विजय मिली। बसपा के योगेश द्विवेदी को इस चुनाव में 31168 मत मिले। जबकि रालोद के डॉ. अशोक अग्रवाल को 29080 वोट ही मिल सके और वह चौथे स्थान पर रहे।

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यदि जनपद की राजनीति के विधानसभा इतिहास में सबसे कम मतों के अंतर से जीत-हार की बात करें तो 1967 में गोकुल विधानसभा सीट से कांग्रेस के गंगाप्रसाद मात्र 228 वोटों से जीते थे। इन्होंने 11147 वोट लेकर निर्दलीय सीपी आजाद 10919 को हराया था। जो कि जनपद में अब तक सबसे कम वोटों से हार जीत है।

जबकि 2012 में मथुरा-वृंदावन विधानसभा सीट से कांग्रेस के प्रदीप माथुर को 54498 वोट ने भाजपा के देवेंद्र कुमार शर्मा 53997 वोटों से हराया था। जबकि सपा के डॉ. अशोक अग्रवाल 53049 मत लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे। वर्ष 2017 में सबसे कम मत से हार जीत मांट विधानसभा में हुई थी। जिसमें बसपा के पं. श्यामसुंदर शर्मा ने 65862 मत लेकर रालोद के योगेश नौहवार 65430 को 432 वोटों से हराया था। जबकि भाजपा के प्रत्याशी एसके शर्मा 59871 मत लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे। जबकि 2017 में पूरे प्रदेश में मोदी लहर थी और भाजपा के प्रत्याशियों ने मथुरा जनपद की 5 में से 4 विधानसभा सीट मथुरा-वृंदावन, बलदेव, छाता एवं गोवर्धन सीट पर कब्जा किया था। इस चुनाव में मोदी लहर को भी धता बताते हुए बसपा प्रत्याशी श्यामसुंदर शर्मा ने भाजपा के एसके शर्मा को तीसरे स्थान पर रहने पर मजबूर कर दिया था।

वर्ष 1996 में जनपद से अलग हो चुकी हाथरस जनपद की सादाबाद सीट पर 2002 में रालोद के प्रताप सिंह एवं सपा के डॉ. अनिल चौधरी के बीच संघर्षपूर्ण मुकाबले में रालोद के प्रताप सिंह ने मात्र 76 मतों से जीत हासिल की थी। उन्हें 41972 मत मिले थे। जबकि सपा प्रत्याशी डॉ. अनिल चौधरी को 41896 वोट मिले थे।

राम मंदिर और मोदी लहर के बीच विधानसभा चुनावों में भाजपा जहां मांट विधानसभा क्षेत्र में विजय पताका नहीं फहरा सकी। साथ ही 1951 और 1957 में हुए रिकार्ड मतदान प्रतिशत को भी किसी भी विधानसभा चुनाव में एक भी विधानसभा सीट पर नहीं तोड़ा जा सका।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
(समाचार सरकारी आंकड़ों एवं राजनेताओं से वार्ता पर आधारित है)

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