प्रथम चरण के मतदान रिपोर्ट ने उड़ाई भाजपा की नींद, विपक्ष में उत्साह….?

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फोटो इंटरनेट से लिया गया।

विषबाण डिजिटल डेस्क

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में पहले चरण के मतदान के बाद बीजेपी और सपा-रालोद गठबंधन की तरफ से जीत के दावे किए जा रहे हैं। किसका दावा सच्चा निकलेगा और किसका झूठा साबित होगा। ये तो 10 मार्च को मतगणना के बाद ही पता चलेगा, लेकिन राजनीतिज्ञ मतदान प्रतिशत और नेताओं के चेहरों के हावभाव से ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि पहले चरण का मतदान किसके हक में हुआ है। पिछले तीन चुनावों के नतीजे बताते हैं कि पहले चरण में बढ़त बनाने वाली पार्टी ही आखिर में सत्ता पर काबिज़ होती है। मथुरा में भी स्थितियां भाजपा के अनुकूल नहीं दिख रहे हैं।

ज्यादातर चुनाव विश्लेषकों को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पहले चरण वाले 11 ज़िलों में बीजेपी को बड़ा नुक़सान होता दिख रहा है। खुद बीजेपी के नेता मान रहे हैं कि इस बार बीजेपी पिछले चुनाव में जीती हुई 53 सीटों का आंकड़ा किसी सूरत में नहीं छू पाएगी। उसे होने वाले नुकसान को लेकर आंकलन अलग-अलग है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी की तरफ से चुनावी रणनीति बनाने और उसे अमलीजामा पहनाने वाली टीम के एक सदस्य के मुताबिक बीजपी 20 से 25 सीटें जीत रही है। ये अंदाज़ा मतदान के बाद विभिन्न सीटों से बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं की तरफ से भेजी गई रिपोर्ट के आंकड़ों के आधार पर लगाया गया है। क़रीब 10 सीटों पर वो कड़े मुकाबल में फंसी है. इन सीटों पर उसकी जीत का दारोमदार मुस्लिम वोटों के बंटवारे पर है। इसके लिए पार्टी को ओवैसी की पार्टी से बहुत उम्मीदें हैं।

फेल होते दिख रहे सीएम योगी के दांव
बीजेपी खासकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव में जीतने के लिए सारे हथकंडे अपना रहे हैं। उन्होंने हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, विकास के मुद्दों के साथ ही सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का भी कार्ड खेला। चुनाव के ऐलान के फौरन बाद उन्होंने कई टीवी चैनलों पर चुनाव को 80 फीसदी बनाम 20 फीसदी की लड़ाई बताया। उनका सीधा मतलब 80 प्रतिशत हिन्दू वोटर्स और 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स के बीच संघर्ष से था। इस फॉर्मूले के ज़रिए वो अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की जोड़ी के जाट-मुस्लिम समीकरण को तोड़ना चाहते थे। मतदान के दिन सुबह योगी ने वीडियो जारी करके कहा कि अगर यूपी में दोबारा बीजेपी की सरकार नहीं बनी तो ये केरल, कश्मीर और पश्चिम बंगाल बन जाएगा और उनकी पांच साल की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। मतदान का पैटर्न देख कर लगता है कि सांप्रदायिक धु्रवीकरण की योगी की ये आखि़री कोशिश भी कामयाब होती नहीं दिख रही है।

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सफल दिख रही अखिलेश-जयंत की सोशल इंजीनियरिंग
बीजपी की रणनीति के खिलाफ सपा मुखिया अखिलेश जाट-मुस्लिम के साथ ही सैनी, मौर्य, कुशवाहा और कश्यप जैसी अति पिछड़ी जातियों की सोशल इंजीनियरिंग के साथ मैदान में उतरे थे। पहले चरण वाली सीटों पर इसका असर दिखा। इस बार अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के गठबंधन ने बीजेपी के उम्मीदवारों को कुछ हद तक बांध दिया कि वो वो खुल कर नहीं खेल पाए। शहरी इलाकों में बीजेपी के वोटर जहां उदासीन दिखे, वहीं मुस्लिम इलाक़ों में मतदान को लेकर उत्साह देखा गया। जिस कैराना के उम्मीदवार का नाम लेकर योगी ने ’10 मार्च के बाद गर्मी निकालने’ और ’मई-जून में यूपी को शिमला बनाने’ वाला बयान दिया था, वहां सबसे ज्यादा 75 फीसदी मतदान हुआ है। क्या ये बीजेपी का किला ढहने के संकेत हैं?

सीएसडीएस को दिखी बीजेपी के खिलाफ हवा
चुनावी सर्वेक्षण और चुनाव से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण करने वाली संस्था सीएसडीएस के निदेशक संजय सिंह के मुताबिक पहले चरण में मतदान वाली सीटों पर बीजेपी के खिलाफ़ आंधी चलती दिख रही है। ये आंधी बीजेपी की ’डबल इंजन’ की सरकार के खिलाफ है। ये बात उन्होंने विभिन्न सीटों पर एक्ज़िट पोल करने गए अपनी टीम के सदस्यों से मिले फीडबैक के आधार पर कही है। उनका कहना है कि बीजेपी का किला ढह रहा है। इसकी शुरुआत पहले चरण के मतदान से हो चुकी है। सीएसडीएस का एक्ज़िट पोल एकदम सटीक निकलता है। 2017 के चुनाव में इसने बीजेपी को 300 से ज्यादा सीटें मिलने की भविष्यवाणी की थी और 2012 में समाजवादी पार्टी को 225 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। इस लिहाज से देखें तो संजय सिंह के दावे में दम नज़र आता है।

2017 की अपेक्षा इस बार 2 फीसदी कम हुआ है मतदान
पहले चरण की 58 सीटों पर हुए मतदान के पैटर्न और पिछले चुनाव के तुलनात्मक विश्लेषण से नतीजों के रुझान का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। इस बार करीब 61.06 फीसदी वोट पड़े हैं। ये पिछले 2017 के चुनाव से 2 फीसदी कम हैं।

2017 में इन 58 सीटों पर औसतन 63.75 फीसदी मतदान हुआ था, यानि इस बार करीब 2 फीसदी वोटिंग कम हुई है। 2012 में इन्हीं 58 सीटों पर 61.03 फीसदी वोटिंग हुई थी। यानि 2017 में करीब 2 फीसदी वोटों में इजाफा हुआ था। पिछली बार 2 फीसदी वोट बढ़े थे तो बीजेपी को 43 सीटों का फायदा हुआ था। जबकि बसपा को 18 और सपा को 12 सीटों का नुकसान हुआ था। 2017 में भाजपा को इन 58 में से 53 सीटों पर जीत मिली थी। 2012 में इन 58 सीटों में बीजपी को 10 सीटें, सपा को 14 और बसपा को 20 सीटें मिली थीं। 11 सीटें निर्दलियों ने जीती थीं।

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दिग्गजों की सीटों पर कम मतदान का क्या मतलब?
योगी सरकार में ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की मथुरा विधानसभा सीट पर 57.33 प्रतिशत मतदान हो सका। 2017 में यहां 59.5 फीसदी मतदान हुआ था। उत्तराखंड की राज्यपाल का पद छोड़कर विधानसभा चुनाव लड़ने आई बेबीरानी मौर्या की आगरा ग्रामीण विधानसभा सीट पर 62.00 प्रतिशत मतदान हुआ। पिछली बार 63.7 फीसदी मतदान हुआ था। हस्तिनापुर विधानसभा सीट पर 60 प्रतिशत मतदान हो सका। 2017 में 67.8 फीसदी मतदान हुआ था।

योगी सरकार में मंत्री और फायरब्रांड नेता संगीत सोम की सरधना सीट पर 62.30 प्रतिशत मतदान हो सका। 2017 में 71.8 फीसदी मतदान हुआ था. जेवर विधानसभा सीट पर 60.30 प्रतिशत मतदान हुआ। 2017 में 65.5 फीसदी मतदान हुआ था। जिस कैराना से गृहमंत्री अमित शाह ने हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उठाया था और योगी ने उम्मीदवार की गर्मी निकालने की बात की थी, वहां 6 प्रतिशत मतदान बढ़ गया। वहां 75.12 प्रतिशत मतदान हुआ है। 2017 में 69.6 फीसदी मतदान हुआ था।

पहले चरण के मतदान का पैटर्न बताता है कि चुनाव को 80 फीसदी बनाम 20 फीसदी की लड़ाई में तब्दील करने का योगी आदित्यनाथ का फार्मूला नहीं चला। बीजेपी 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स को छोड़ कर बाकी 80 प्रतिशत हिन्दू वोटर्स को एकजुट करने पर ज़ोर दे रही थी, लेकिन वो इसमें नाकाम होती दिखी। वहीं अखिलेश यादव और जयंत की जोड़ी ने 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स को एकजुट रखा। ज्यादातर चुनाव विश्लेषकों को इस जोड़ी की सोशल इंजीनियरिंग कामयाब होती दिख रही है। मुजफ्फरनगर में 41 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के बावजूद ज़िले की 6 विधानसभा सीटों पर इस गठबंधन ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा। इसके बावजूद जाट-मुस्लिम समीकरण एकजुट नज़र आया। पहले चरण में ज्यादातर सीटों पर बीएसपी मुख्य मुकाबल से बाहर दिखी तो ओवैसी की पार्टी का मुस्लिम इलाक़ों में कोई खास असर होता नहीं दिखा। यहीं ट्रेंड दूसरे चरण में भी जारी रहने की उम्मीद जताई जा रही है।

पहला चरण में जीत जिसकी, सत्ता पर कब्जा उसका
ग़ौरतलब है कि पिछले दोनों चुनाव में इन जिलों में पहले चरण में ही मतदान हुआ था। 2017 में 2 प्रतिशत अधिक मतदान होने से बीजेपी ने पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश जीता और बाकी के चरणों में पूरे उत्तर प्रदेश में बीजपी का भगवा लहरा गया था। तो क्या इस बार 2 प्रतिशत कम मतदान बीजेपी के खिलाफ जा रहा है। अगर पहले चरण में बीजेपी को बड़ा नुकसान होता है, तो बाकी के चरणों में भी नुकसान जारी रहेगा। आखिरकार सत्ता उसके हाथ से निकल जाएगी।

पिछले तीन चुनावों में ऐसा ही हुआ है, 2017 में पहले चरण से ही बीजेपी ने बढ़त बना ली थी। 2012 के चुनाव के पहले चरण में समाजवादी पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं और सत्ता पर पूर्ण बहुमत से उसका क़ब्ज़ा हो गया था। यही पैटर्न 2007 में भी रहा था। बीएसपी पहले चरण से ही बढ़त बनाते हुए चली और पहली बार पूर्ण बहुमत से उसकी सरकार बनी थी।

मोदी-योगी के मंत्री दिख रहे मायूस
पहले चरण में दिग्गजों की सीटों पर कम मतदान बीजेपी को खल रहा है। योगी सरकार के मंत्रियों वाली सीटों पर कम मतदान होना उनकी हार की तरफ इशारा कर रहा है। मतदान के बाद विभिन्न टीवी चैनलों पर मोदी सरकार के मंत्री संजीव बालियान से लेकर योगी सरकार के मंत्री श्रीकांत शर्मा, संगीत सोम और सुरेश राणा जीत के दावे तो कर रहे हैं लेकिन उनके चेहरों के भाव उनके मुंह से निकलने वाले शब्दों का साथ देते नहीं दिख रहे थे। कई टीवी चैनलों की रिपोर्ट के मुताबिक योगी सरकार के दिग्गज मंत्रियों वाली सीटों पर हिंदू मतदाता मतदान को लेकर काफी उदासीन थे, वहीं मुस्लिम मतदाताओं में काफी उत्साह था। अक्सर देखा गया है कि बीजेपी का कट्टर वोटर उससे नाराज होने की स्थिति में उसके खिलाफ वोट नहीं डालता। इसके बजाय वो वोट डालने ही नहीं निकलता। ये स्थिति योगी सरकार के लिए ख़तरे की घंटी है।

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2017 के इतिहास को दोहरा पाने में सफल नहीं दिख रही भाजपा
मथुरा। जनपद की पांचों सीटों पर प्रथम चरण में मतदान हो चुका है। फिलहाल मतदान के बाद की स्थितियों के अनुसार तो मथुरा की किसी भी सीट पर एक भी प्रत्याशी का आसानी से जीतना मुश्किल दिखाई दे रहा है। जबकि मथुरा को जीतने के लिए इस बार स्वयं सीएम योगी आदित्यनाथ 20 बार से अधिक जनपद आए। इसके बाद भी भाजपा प्रत्याशियों के सामने उनके विपक्षी प्रत्याशियों ने अच्छी खासी चुनौती खड़ी की है। वर्ष 2017 में मथुरा की 5 में से 4 सीटें भाजपा ने जीती थीं जबकि इस बार ऐसा होता नहीं दिख रहा है। वहीं 2017 के चुनावों की अपेक्षा इस बार कम मतदान होना भी भाजपा के पक्ष में नहीं जा रहा है।

यूपी सरकार के दिग्गजों में से एक ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की सीट मथुरा-वृंदावन विधानसभा में भी इस बार गत चुनाव 2017 की अपेक्षा कम मतदान हुआ है। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां 59.5 फीसदी मतदान हुआ था, जबकि इस बार 57.33 प्रतिशत ही मतदान हुआ है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कम मतदान प्रतिशत से भाजपा को नुकसान होता है।

इसी तरह छाता विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे कैबिनेट मंत्री चौ. लक्ष्मीनारायण की जीत भी आसान नहीं दिख रही है। यहां 2017 के चुनावों में 66.84 फीसदी मतदान हुआ था। जबकि इस बार के चुनाव में 64.55 प्रतिशत वोट पड़े हैं। इसके साथ ही इतिहास भी भाजपा प्रत्याशी के विपरीत दिख रहा है। यहां गत 30 वर्षों से कोई भी प्रत्याशी लगातार 2 बार विधायक नहीं बन सका है। इस तरह आंकड़े इस बार पूर्व विधायक ठा. तेजपाल सिंह के पक्ष में जाते दिख रहे हैं।

गोवर्धन विधानसभा में देखें तो इस सीट पर इस बार के चुनावों में गत चुनाव की अपेक्षा अधिक मतदान हुआ है। वर्ष 2017 के चुनावों में इस सीट पर 66.51 प्रतिशत मतदान हुआ था। जबकि इस बार 66.75 प्रतिशत वोट पड़े हैं। हालांकि यह अंतर अधिक नहीं है। अब यह तो 10 मार्च को मतगणना के बाद ही पता लग सकेगा कि यहां कौन प्रत्याशी बाजी मारता दिख रहा है लेकिन फिलहाल चर्चाओं की मानें तो यहां बसपा और भाजपा प्रत्याशी के बीच दिख रहे सीधे मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में गठबंधन प्रत्याशी प्रीतम सिंह काफी हद तक सफल रहे हैं।

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मांट सीट पर वर्ष 2017 के चुनावों में 66.57 प्रतिशत वोट डाले गए थे। जबकि इस बार के चुनावों में यह घटकर 65.10 प्रतिशत रह गया है। यहां पर जहां मतदान से पूर्व सपा-रालोद प्रत्याशी और बसपा प्रत्याशी के बीच सीधा मुकाबला दिख रहा था वह भाजपा प्रत्याशी के प्रयासों के बाद त्रिकोणीय मुकाबले में तब्दील होता दिख रहा है। हालांकि इस बार सपा और रालोद ने मिलकर चुनाव लड़ा है। जबकि वर्ष 2017 के चुनावों में दोनों अलग-अलग चुनाव लड़े थे। यदि वर्ष 2017 के चुनावों में दोनों को मिले मतों को जोड़कर इस बार के अनुसार देखा जाए तो गठबंधन प्रत्याशी रिकार्डतोड़ जीत हासिल कर सकते हैं लेकिन उनके लिए यह कर पाना मुश्किल नजर आ रहा है। पं. श्यामसुंदर शर्मा इस तरह की चुनौतियों से पूर्व में भी पार पाते रहे हैं।

बलदेव सुरक्षित सीट पर देखा जाए तो यहां सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी बबीता जाटव के लिए जाटों द्वारा एकजुट होकर वोट करने की चर्चाएं क्षेत्र में चल रही हैं। वहीं अन्य जातियों ने भी इनके पक्ष में वोट किया है। जबकि भाजपा समर्थक खुलकर पूरन प्रकाश के जीतने के दावे कर रहे हैं। इस सीट पर भी 2017 के चुनावों की अपेक्षा कम मतदान हुआ है। वर्ष 2017 में यहां 66.71 प्रतिशत मतदान हुआ था। जबकि इस बार यहां 62.66 प्रतिशत वोट पड़े हैं। गत चुनाव की अपेक्षा करीब 4 फीसदी वोट कम पड़ना किस प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाएंगे। यह तो मतगणना के बाद ही पता लगेगा लेकिन फिलहाल यहां सीधा मुकाबला माना जा रहा है।

जबकि मथुरा की सीटों पर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिए प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने काफी समय पूर्व ही तैयारियां शुरू कर दी थीं। वह करीब 22 बार मथुरा आए। यहां आकर उन्होंने सभाएं कीं। रैलियां की। कार्यकर्ताओं के साथ संवाद किया। वृंदावन में संत-महात्माओं से मुलाकात कर उनके साथ भोजन किया। मथुरा में भव्य श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनवाया। बरसाना की होली में उन्होंने भाग लिया। यहां तक कि मथुरा से उनके चुनाव लड़ने की भी चर्चाएं अंत तक जोरों पर रहीं। जो कि प्रत्याशी घोषित होने के बाद ही थमीं। इसके बाद भी मथुरा की किसी भी सीट से भाजपा प्रत्याशी के आसानी से जीतने की परिस्थितियां बनती नहीं दिख रही हैं। हालांकि स्पष्ट परिणाम तो 10 मार्च को होने वाली मतगणना के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा लेकिन वर्ष 2014 में मथुरा की 5 में से 4 सीट जीतने वाली भाजपा के लिए फिलहाल उस इतिहास को दोहरा पाना आसान नहीं लग रहा है।