जिला पंचायत चुनाव तय करेगा कई दिग्गजों का भविष्य

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भाजपा प्रत्याशी चौ. किशन सिंह और रालोद प्रत्याशी राजेंद्र सिंह सिकरवार।

मथुरा। जिला पंचायत चुनाव में अब चंद घंटों का समय रह गया है। भाजपा रालोद सहित अन्य दलों के राजनेताओं की धड़कनें तेज हो गई है। चुनाव में जीत भले ही किसी भी दल की हो लेकिन अनेक राजनीतिक दिग्गजों का भविष्य इस चुनाव ने दांव पर लगा दिया है। आने वाला समय जनपद की राजनीति बड़ा उलटफेर करा सकता है।

जिला पंचायत अध्यक्ष के नामांकन एवं नामांकन वापसी के बाद रालोद के राजेंद्र सिंह सिकरवार और भाजपा के किशन सिंह चौधरी के मध्य सीधा मुकाबला तय हो जाने के बाद अब सभी की निगाहें 3 जुलाई को होने वाले मतदान एवं परिणाम पर टिकी हुई हैं। इस चुनाव में बसपा के सर्वाधिक सदस्य जीतने के बाद भी राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले पं. श्यामसुंदर शर्मा द्वारा अपनी पत्नी को चुनाव मैदान से हटाए जाने के बाद अब बसपा के निर्वाचित सदस्यों के हाथ में जिला पंचायत अध्यक्ष की जीत की चाबी आ गई है। अब यह सदस्य ही निर्धारित करेंगे कि भाजपा अथवा रालोद दोनों में किस पार्टी के प्रत्याशी को जीत का ताज पहनाना है।

पूर्व मंत्री पं. श्यामसुंदर शर्मा के नजदीकी सूत्रों का कहना है कि मथुरा जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव मैदान से हटने के लिए जिला पंचायत सदस्यों एवं पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं द्वारा मोटी रकम मांगने तथा भितरघात की आशंका के चलते मजबूर होना पड़ा। सूत्रों का यह भी कहना है कि मांट विधायक श्री शर्मा के मैदान छोड़ने का असर उप्र की करीब 20 से 25 जिला पंचायत अध्यक्ष सीटों पर पड़ा है। यदि मांट विधायक श्री शर्मा चुनाव लड़ते तो उक्त जनपदों में बसपा के प्रत्याशी भी पीछे नहीं हटते। इसके चलते ही बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती को यह ऐलान करने पर मजबूर होना पड़ा कि बसपा उप्र में जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ेगी। इससे उप्र की पूरी राजनीति ही प्रभावित हो गई। हालांकि सूत्रों का कहना है कि बसपा के कई दिग्गज नेताओं का समर्थन भाजपा प्रत्याशी किशन सिंह चौधरी को मिल चुका है। वहीं अंदरखाने कुछ नेता रालोद प्रत्याशी के समर्थन में भी खड़े नजर आ रहे हैं। आपको बता दें कि जनपद की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले पूर्व मंत्री एवं मांट से लगातार 8 बार से विधायक पं. श्यामसुंदर शर्मा द्वारा जिला पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव न लड़ने का खुलासा सबसे पहले विषबाण द्वारा ही किया गया था।

भाजपा और रालोद की निगाहें जहां बसपा के जिला पंचायत सदस्यों को अपने पाले में करने के लिए टिकी हुई हैं। वहीं दूसरी तरफ रालोद और भाजपा प्रत्याशियों को अपनी ही पार्टी के कुछ सदस्यों से भितरघात की आशंका भी सता रही है। हालांकि दोनों ही प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। जीत के दावे कितने सच साबित होंगे यह तो 3 जुलाई को होने वाले मतदान के बाद आने वाला चुनाव परिणाम ही बता पाएगा लेकिन दोनों प्रत्याशियों में जीजा-साले का रिश्ता होने के कारण चर्चाओं का बाजार भी गर्म है।

जिला पंचायत चुनाव में इस बार पंचायत सदस्यों की कीमत करीब सवा करोड़ से दो करोड़ रूपए तक लग रही है। हालांकि कई पंचायत सदस्य अपनी कीमत बढ़वाने के काफी प्रयास भी कर रहे हैं। जबकि गत जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के दौरान जिला पंचायत सदस्यों को करीब साढे़ तीन करोड़ रूपए मिले थे, लेकिन इस बार इनकी कीमत 1.5 से 2 करोड़ से ऊपर नहीं जा पा ही है। इस बार के जिला पंचायत चुनाव में एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि इस बार जहां पंचायत सदस्यों की कीमत गत चुनाव की अपेक्षा घटी है। वहीं पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने के लिए टिकट खरीदने की कीमत काफी बढ़ी है। एक जिला पंचायत सदस्य की मानें तो इस बार जिला पंचायत सदस्य की टिकट के लिए 35 से 40 लाख तक पार्टी फंड के नाम पर वसूले गए। साथ ही कुछ नेताओं ने भी टिकट फाइनल कराने और टिकट बचाने के लिए मोटी रकम वसूली। इसके बाद चुनाव में भी करोड़ों रूपए की राशि खर्च हो गई लेकिन वोट के बदले करीब सवा करोड़ ही मिल पा रहे हैं। इससे जितना हमें जिला पंचायत अध्यक्ष द्वारा पैसा दिया जा रहा है, उससे कहीं अधिक रूपया तो हमारे चुनाव में खर्च हो चुका है। इसके बाद भी हम पर बिकने के आरोप लग रहे हैं।

वहीं राजनीतिक गलियारे में यह भी चर्चा है कि जिला पंचायत चुनाव से जुड़े एक नेता ने पंचायत चुनाव जीतने के लिए अपने एक कालेज को 22 करोड़ रूपए में बेच दिया। अगर उसे राजनीति में सफलता नहीं मिली तो उनका भविष्य अंधकार में डूबना तय माना जा रहा है। साथ ही अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं का भविष्य भी जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव परिणाम तय करेगा। जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव परिणाम जनपद में नया राजनीतिक उलटफेर भी दिखा सकता है।

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