यूपी चुनावः नारे फिर बने हथियार, खूब हो रहा चुनाव प्रचार

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फोटो इंटरनेट से लिया गया।

लखनऊ। भारतीय राजनीति में चुनावी नारों की बहुत अहम भूमिका रही है। कोई भी चुनाव रहा हो, कोई भी पार्टी रही हो। सभी राजनीतिक दल नए नए नारों से चुनावी समां बांधने का प्रयास करते हैं। नारों के सहारे राजनेता अपनी खूबियां तो गिनाते ही हैं वरन् अपने विरोधियों की कमियों को भी तरीके से कम शब्दों में ही उजागर कर देते हैं।

भारतीय राजनीति के साथ-साथ यूपी की राजनीति में भी नारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस बार के विधानसभा चुनावों में भी नारे और गीत लोगों की जुबां पर चढ़ रहे हैं। भाजपा ने इस चुनाव में ’’ अबकी बार, योगी सरकार’’, ’’जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे’’, ’’सोच ईमानदार, काम दमदार, फिर एक बार भाजपा सरकार’’, ’’साइकिल रखो नुमाईश में, भाजपा आएगी बाईस में’’ आदि नारे दिए हैं। वहीं, भाजपा ने अबकी बार 300 के पार नारा दिया। मोदी लहर में 2017 में भाजपा ने यह कर दिखाया और वह 300 सीट के पार हो गई।

मोदी लहर में गुम हो गए कमल-भाजपा के नारे

वहीं समाजवादी पार्टी द्वारा भी नारे गढ़ दिए गए हैं। इनमें ’’22 में बाइसकिल’’, ’’नई हवा है नई सपा है’’, जय अखिलेश, तय अखिलेश’’, ’’यूपी में है नया जनादेश आ रहे हैं अखिलेश’’ आदि नारे दिए हैं। जो कि सपा कार्यकर्ता जमकर भुनाने का प्रयास कर रहे हैं। इससे पहले वर्ष 2012 में जब सपा ने चुनाव लड़ा था तब भी सपा द्वारा कुछ चुनावी स्लोगन दिए गए थे। जिनमें ’’अखिलेश का जलवा कायम है उनका बाप मुलायम है’’, यूपी की मजबूरी है अखिलेश बहुत जरूरी है’’ आदि नारे खूब लोकप्रिय हुए और सपा ने बहुमत के साथ उप्र में सरकार बनाई थी।

वहीं कांग्रेस भी नारों के माध्यम से प्रदेश में अपनी जगह बनाने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस की चुनावी कमान संभाल रहीं प्रियंका गांधी ने अपने मुख्य नारे के माध्यम से प्रदेश की आधी आबादी यानि महिलाओं को लुभाने की कोशिशें की हैं। जिसमें ’’ लड़की हूं लड़ सकती हूं’’ मुख्य नारा है। इसके साथ ही ’’जांत पे न पांत पे मोहर लगेगी हाथ पे’’ नारा तो उनका सदाबहार नारा है। जोकि कांग्रेस के हर चुनाव में बोला जाता है। हालांकि इस चुनाव में जिस तेजी से नारे के माध्यम से आगे बढ़ने की कोशिश हुई थी वह प्रथम चरण के मतदान के बाद धूमिल होती नजर आ रही है।

इस बार के चुनाव में बसपा भले ही मुख्य मुकाबले में नहीं दिख रही है लेकिन नारे उन्होंने भी खूब गढ़े हैं। इनमें ’’सर्वजान हिताय सर्वजन सुखाय’’, ’’हर पोलिंग बूथ जिताना है बसपा को सत्ता में लाना है’’, ’’बिकाऊ नहीं टिकाऊ चाहिए’’ ’’भाईचारा बढ़ाना है, बसपा को लाना है’’ आदि नारे इस चुनाव में खूब चल रहे हैं। इससे पूर्व भी बसपा के संस्थापक कांशीराम को चुनावी नारे गढ़ने में महारथ हासिल थी। उन्होंने बसपा के साथ पिछड़ों और दलितों को लाने के लिए नारा दिया था- ’’ठाकुर बामन बनिया छोड़, बाकी सब हैं डीएस-फोर’’। इसी तरह का एक नारा ’’तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’’ भी दिया गया। हालांकि, यह नारा काफी विवादास्पद रहा और आज भी बसपा को इसके लिए घेरा जाता है। इस नारे के बाद बसपा ने दलितों के साथ ओबीसी के बीच अपना दखल बनाया।

प्रथम चरण के मतदान रिपोर्ट ने उड़ाई भाजपा की नींद, विपक्ष में उत्साह….?

उप्र में इससे पहले के चुनावों को देखें तो राम मंदिर आंदोलन के दौर में भारतीय जनता पार्टी को 1991 में सत्ता हासिल हुई। इस जीत के पीछे उन नारों को नहीं भूला जा सकता है जो मंदिर आंदोलन के दौरान विश्व हिंदू परिषद ने दिए थे। बच्चा-बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का, रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे। अयोध्या कांड के बाद जब कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त हो गई, तो 1993 में सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा। इसमें ’’मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’’ नारा दिया गया। इसके बाद भाजपा को सत्ता से बाहर होना पड़ा। इसके बाद गेस्ट हाउस कांड हुआ तो सरकार गिर गई। इस कांड का असर बसपा के नारे में दिखाई दिया। बसपा ने नया नारा ’’चढ़ गुंडन की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर’’ दिया।

भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ भी बसपा ने चर्चित नारा बनाया था- ’’चलेगा हाथी उड़ेगी धूल, ना रहेगा हाथ, ना रहेगा फूल’’। उसके बाद 2007 में बसपा ने ब्राह्मणों को अपने साथ लेने के लिए अपना पुराना नारा पूरी तरह से उलट दिया। ’’हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है’’ और ’’ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा’’ जैसे नारे दिए गए। इस चुनाव में बसपा को पूर्ण बहुमत मिला। इस चुनाव से पहले सपा की सरकार थी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। उस समय अमिताभ बच्चन ने सपा की तरफ से प्रचार किया था। इसमें नारा दिया था-’’यूपी में है दम, क्योंकि जुर्म यहां है कम’’।