धर्मनगरी में भगवान के नाम पर पग-पग पर कमीशन का खेल

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मथुरा। रहिमन धंधा धर्म का कभी न मंदा होय, यह धंधा फूले-फले, जब बाकी धंधे रोय। यह पंक्तियां इन दिनों धर्म नगरी मथुरा में सहीसाबित हो रही हैं। यहां भले ही अन्य सभी व्यापार सुस्त नजर आ रहे हों लेकिन तथाकथित पंडा, पुजारियों और ढाबा संचालकों का गठजोड़ पग पग पर भक्तजनों को भगवान के नाम पर ठग रहा है। मंदिरों, होटलों, ढाबों, गेस्ट हाउसों में कमीशन का खेल बड़े पैमाने पर खेला जा रहा है। इससे मथुरा आने वाले श्रद्धालुओं को प्रतिदिन लाखों का चूना लग रहा है।
कान्हा की नगरी में मंदिरों के दर्शन कर मोक्ष की कामना लेकर आने वाले श्रद्धालुओं को मोक्ष प्राप्ति हो पाएगी कि नहीं। यह तो भविष्य के गर्त में ही छिपा है लेकिन फिलहाल यहां मंदिरों में दर्शन कराने, चढ़ावा चढ़ाने, दुकान से सामान खरीदवाने, प्रसाद खरीदवाने, गेस्ट हाउस में रोकने, ढाबा एवं होटल में खाना खिलाने के नाम पर जो गठजोड़ चल रहा है। इस गठजोड़ में शामिल लोग इस खेल में भक्तों से प्रतिदिन लाखों की ठगी कर रहे हैं। यह पूरा खेल व्यवस्थित तरीके से खेला जाता है। श्रद्धालुओं को अंत तक अपने ठगे जाने की जानकारी नहीं हो पाती है। यह खेल बड़े शहरों से आने वाले श्रद्धालुओं के साथ वहीं से शुरु हो जाता है। दिल्ली, मुंबई, जयपुर, इंदौर, अजमेर, अहमदाबाद, सूरत, बड़ौदा, आगरा आदि शहरों से आने वाले भक्तों के साथ वहीं से तथाकथित गाइड अथवा पंडा मंदिरों के दर्शन कराने, मथुरा घुमाने के लिए आते हैं। यहां आकर वृंदावन स्थित कुछ प्राचीन मंदिरों के दर्शन कराने के बाद फिर श्रद्धालुओं को पत्थरपुरा स्थित आधा दर्जन सेटिंग वाले मंदिरों के दर्शन करने के लिए ले जाया जाता है। यहां कुछ मंदिरों में बकायदा वृंदावन बिहारीजी जैसे नाम भी लिखे हुए हैं। यहां तथाकथित पंडा-गाइड श्रद्धालुओं को मंदिर की झूठी मान्यता, प्राचीनता, भगवान की लीलाओं की मनगढं़त कहानियों सुनाते हैं कि यहां कान्हा ने कपड़े धोए, कान्हा ने यहां गाएं चराईं, कान्हा ने भोजन किया, कान्हा यहां अपने सखाओं के साथ खेले, कान्हा ने यहां कालिया नाग का मान मर्दन किया, कान्हा ने यहां राक्षसों का संहार किया। मंदिरों में इस तरह की कहानियां सुनाकर भक्तों को भाव विभोर कर उन्हें चढ़ावा चढ़ाने के लिए मानसिक रुप से तैयार करते हैं। श्रद्धालुओं को संकल्प दिलाया जाता है। यहां चढ़ने वाले चढ़ावे में पंडा-गाइड का 88 प्रतिशत तक का कमीशन तय होता है।
वृंदावन से श्रद्धालुओं को गोकुल-महावन लाया जाता है। यहां कुछ मंदिर ऐसे हैं जिनमें सेटिंग के तहत मंदिरों के पट ही तभी खोले जाते हैं जब श्रद्धालुओं द्वारा वहां चढ़ावा चढ़ाया जाता है। तथाकथित पंडा-गाइड भक्तों को चढ़ावा चढ़ाने के लिए प्रेरित करते हैं कि देखते हैं कि कौन भक्त भगवान को अधिक से अधिक भेंट चढ़ाकर सबसे पहले उनके दर्शन कर पुण्य लाभ कमाएगा। कौन भक्त अपने भगवान को सबसे अधिक मानता है। इससे भक्त उनकी बातों में आकर अधिक से अधिक चढ़ावा चढ़ाते हैं। यहां पंड़ा-गाइड का मंदिर के चढ़ावे में से 80 प्रतिशत हिस्सा तय होता है।
अब गेस्ट हाउस-होटल में भक्तों को ठहराने के नाम पर हो रहे खेल को समझें तो रेलवे स्टेशन और बस स्टेंड के समीप स्थित गेस्ट हाउसों में भक्तों को ठहराया जाता है। यहां ठहराए जाने के लिए जितना भी किराया निर्धारित किया जाता है उसमें से 40 से 50 प्रतिशत तक कमीशन तय होता है। इसमें पंडा-गाइड अथवा गाड़ी चालक का हिस्सा तय होता है। गेस्ट हाउस संचालकों से बकायदा किराए के लिए मोलभाव भी तय होता है। हालांकि शहर के कुछेक बड़े होटलों में यह कमीशन नहीं दिया जाता है।
ढाबों-रेस्टोरेंट पर खाना खिलाने के नाम पर भी वाहन चालकों का कमीशन तय होता है और खाना पीना भी निशुल्क कराया जाता है। ढाबों पर वाहन चालकों को 200 रुपए और पानीगांव अथवा शहर के थोड़े बड़े रेस्टोरेंट में 1000 रुपए तक मिल जाते हैं। साथ ही खाना भी मिलता है। कुछ ढाबों अथवा रेस्टोरेंट में प्रतिशत के हिसाब से कमीशन तय होता है।